Galib ki Shayari
बिजली इक कौंध गयी आँखों के आगे तो क्या,बात करते कि मैं लब तश्न-ए-तक़रीर भी था। इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया।वर्ना हम भी आदमी थे काम के।। उन के देखे से जो आ जाती है…
बिजली इक कौंध गयी आँखों के आगे तो क्या,बात करते कि मैं लब तश्न-ए-तक़रीर भी था। इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया।वर्ना हम भी आदमी थे काम के।। उन के देखे से जो आ जाती है…