चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र में एक श्लोक लिखा है यह श्लोक इस प्रकार है-
दुष्टा भार्या शठं मित्रं भृत्यश्चोत्तरदायक:।
स-सर्पे च गृहे वासो मृत्युरेव न संशय:।।
इस श्लोक में चरित्रहीन स्त्री, धूर्त मित्र, जवाब देने वाला नौकर और सांप के निवास वाले घर से सदैव दूर रहने के के पक्ष में कहा गया है
ऊपर लिखे श्लोक का अर्थ है- दुष्ट स्वभाव वाली, कड़वा बोलने वाली, बुरे चरित्र वाली स्त्री, नीच और कपटी मित्र, पलटकर जवाब देने वाला नौकर और सांप वाला घर इन चारों के साथ रहने पर मृत्यु आने में कोई संकोच नहीं है ।

चाणक्य का मानना था कि जिस स्त्री का चरित्र ढीला हो या जो अपने पति से संतुष्ट ना रहती हो जिसका स्वभाव दुष्ट हो ऐसी स्त्री से हमेशा अलग रहना चाहिए।
ऐसी स्त्री घर को तबाह कर देती है। इनका पति उसके स्वभाव को देखकर घुटघुट कर मरता है। ऐसी स्त्री को कभी भी पत्नी नहीं बनाना चाहिए ।
लेकिन यदि कोई कपटी या धूर्त मित्र हो तो वह सबसे बड़ा शत्रु होता है। उसको आपके सारे राज मालूम होते हैं। उसका विश्वासघात कई बार हमारे लिए असहनीय हो जाता है। ऐसे मित्रों से तुंरत ही दूर हो जाना चाहिए
घर में नौकर रखना कोई आसान बात नहीं है और आपके पास धन होने का सूचक है। लेकिन नौकर के साथ साथ उसकी बुरी आदतें भी अगर जाए तो दिक्कत हो सकती है । जिन लोगों के नौकर सामने से जवाब देते हैं, मालिक का आदर नहीं करते उन्हें तुरंत हटा देना चाहिए।
ऐसे नौकर अपने मालिक को कभी भी नुकसान पहुंचा सकते हैं।
चाणक्य ने लिखा है की जिस घर में सांप अक्सर सांप दिखाई देते हैं वहां रहने पर भी सांप के काटने से मृत्यु का भय हमेशा ही बना रहता है। इसलिए ऐसे घर को तुंरत छोड़ देना चाहिए।